राम मंदिर या बाबरी मस्जिद, अयोध्या एक शहर, धर्म नगरी या कुछ और
5 दिसंबर 2017 जब सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है, उस मुद्दे की जिस पर समस्त राजनीती पार्टियां, देश के लोग और धर्म एक मत नहीं रख पाएं! तो मन में कुछ विचार आते है जैसे :-
कोई भी धर्म ये तो नहीं सिखाता की दूसरे धर्म का अपमान करो – फिर क्यों एक दूसरे के धर्म के अस्तित्व को कोर्ट में उछाला जा रहा है!
कोई भी धर्म लड़ना नहीं सिखाता- फिर भी क्यों न जाने हिन्दू मुस्लिम के नाम पर लोग झगड़ा कर रहे है.
आज पुरे देश में एक ही चर्चा है- क्या कहेगा सुप्रीम कोर्ट, क्या मंदिर बनेगा, क्या मस्जिद बनेगी! हाई कोर्ट के फैसले को सुरक्षित रखा जायेगा, बदला जायेगा!
कपिल सिब्बल जी की तरफ से पक्ष रखा गया की इसे २०१९ के चुनाव तक डेफ्फेर (टाल) दिया जाये, जिससे इसका राजनितिक लाभ न लिया जा सके. क्या इसे डेफ्फेर करना (टलना) राजनीति नहीं है जिस तरह राजनीती पार्टियों ने इसे इतने वर्षो तक अपने फायदे के लिए टाल रखा है/
अगर इसका हल नहीं निकला तो क्या फिर से इसका लाभ नहीं उठाया जायेगा/ जब सरकार या जनता फैसला लेने में असमर्थ है तो क्यों न कोर्ट को फैसला लेने दिया जाए
जाने माने पत्रकार मानक गुप्ता ने भी लिखा है
सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड पहले तो अयोध्या मामले की सुनवाई जल्द से जल्द करवाने की माँग कर रहा था. सुनवाई का दिन आया तो केस को टालने की माँग…..!!!!!! कोर्ट में भी सियासत…!!!!!!
— Manak Gupta (@manakgupta) December 5, 2017
वास्तव में अयोध्या भी अब पूछती होगी वो एक अयोध्या एक शहर है , धर्म नगरी है या कुछ और
(लेखक के विचार निजी है)