भूमि पेडनेकर ने अपनी पहली फिल्म, दम लगा के हइशा, की रिलीज से पहले ही रूढ़िवादी विचारों को समाप्त किया है। उनकी यह फिल्म पहले से ही बेहद प्रशंसा बटोर रही है और इसके लिए भूमि को सर्वश्रेष्ठ नवोदित अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिल चुका है। इस अभिनेत्री की अन्य दोनों फिल्में जैसे टॉयलेट:एक प्रेम कथा तथा शुभ मंगल सावधान अपरंपरागत विषयों को लेकर बनाई गई हैं।
आईएफएफआई 2017 में यह युवा अभिनेत्री महिलाओं के बारे में तथा रूढ़िवादी विचारों पर खुलकर बात करती है।
भिमि कहती है, “अपने ज्यादा वजन के कारण मैं बहुत दिनों तक उदास थी और अब मैं बहुत खुश हूं कि फिल्म दम लगा के हइशा ने मेरी उस सोच को बदल दिया है।” फिल्म दम लगा के हइशा के बाद मुझे करीब 24 फिल्मों की पेशकश की गई थी लेकिन कोई भी भूमिका मुझे अपने लिए सही नहीं लगी। मैंने सही मौके और परिपूर्ण कहानी का इंतजार किया और फिर मैंने टॉयलेट:एक प्रेम कथा तथा शुभ मंगल सावधान जैसी फिल्मों का चयन किया क्योंकि इसमें एक अभिनेत्री के लिए महत्वपूर्ण भूमिकाएं लिखी गई थीं। मैं अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली मानूंगी यदि मैं अपनी फिल्मों में निभाये गये किरदार के माध्यम से किसी एक के भी जीवन में बदलाव ला सकूं।”
प्रश्न-उत्तर सत्र के दौरान, भूमि पेडनेकर ने अपने विचार खुलकर रखे।
क्या वह सामाजिक संदेश देने वाली फिल्में करना चाहती हैं के सवाल पर कि उन्होंने सकारात्मक उत्तर देते हुए कहा कि एक व्यक्ति के रूप में आप अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते।
उन्होंने यह भी कहा कि वह अपने देश को बचपन से ही प्यार करती हैं और मौका मिलता है तो भविष्य में भी सोशल संदेश देने वाली फिल्में करना चाहेंगी।
व्यक्तिगत जीवन में किस प्रकार की रूढ़िवादिताएं तोड़ना चाहती है जैसे सवाल पर उन्होंने कहा कि वह लिंग भेद के अंतर से छुटकारा चाहती है, क्योंकि आज भी ‘घर का चिराग’ लड़कों को ही समझा जाता है।
एक और प्रश्न के उत्तर में भूमि ने कहा, उनकी फिल्म में पात्रों की प्रगतिशीलता विचारों से प्रकट होनी चाहिए न कि कपड़ों से।
48वें आईएफएफआई का आयोजन 20 से 28 नवंबर 2017 के दौरान गोवा में किया जा रहा है।